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इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए - हनीफ़ अख़गर कविता - Darsaal

इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए

इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए

उन को ख़ामोशी के लहजे में पुकारे जाइए

इश्क़ का मंसब नहीं आवाज़ा-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ

आँखों ही आँखों में हर इक शिकवा गुज़ारे जाइए

देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं रस्म-ए-जुनूँ

अपने दीवाने को इक पत्थर तो मारे जाइए

आइने पे जो गुज़रना हो गुज़र जाए मगर

आप यूँही ज़ुल्फ़-ए-बरहम को सँवारे जाइए

जज़्बा-ए-दिल का तक़ाज़ा है कि बाज़ी जीत लूँ

एहतियात-ए-इश्क़ कहती है कि हारे जाइए

हो सके तो दिल की हालत ख़ुद ही आ कर देखिए

ग़ैर की सुनिए न कहने पर हमारे जाइए

कुछ तो लुत्फ़-ए-लम्स-ए-आग़ोश-ए-तलातुम चाहिए

ता-कुजा 'अख़्गर' किनारे ही किनारे जाइए

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