अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी
अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी
राहगुज़र ही राहगुज़र है राहगुज़र से आगे भी
ताब-ए-नज़र तो शर्त है लेकिन हद्द-ए-नज़र क्यूँ हाइल है
जल्वा-फ़गन तो जल्वा-फ़गन है हद्द-ए-नज़र से आगे भी
सुब्ह-ए-अज़ल से शाम-ए-अबद तक मेरे ही दम से रौनक़ है
इस मंज़र से उस मंज़र तक उस मंज़र से आगे भी
वहम-ओ-गुमाँ से ईल्म-ओ-यकीं तक सैकड़ों नाज़ुक मोड़ आए
रू-ए-ज़मीं से शम्स-ओ-क़मर तक शम्स-ओ-क़मर से आगे भी
दिल से दुआ निकले तो यक़ीनन बाब-ए-असर तक पहुँचेगी
आह जो निकले दिल से तो पहुँचे बाब-ए-असर से आगे भी
दीदा-ए-तर का अब तो 'अख़्गर' एक ही आलम रहता है
नाला-ए-शब से आह-ए-सहर तक आह-ए-सहर से आगे भी
(801) Peoples Rate This