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भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए - हम्माद नियाज़ी कविता - Darsaal

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

मुतालेआ मिरी वहशत का लाज़मी किया जाए

हम ऐसे लोग जो आइंदा ओ गुज़िश्ता हैं

हमारे अहद को मौजूद से तही किया जाए

ख़बर मिली है कि उस ख़ुश-ख़बर की आमद है

सो एहतिमाम-ए-सुख़न आज मुल्तवी किया जाए

हमें अब अपने नए रास्ते बनाने हैं

जो काम कल हमें करना है वो अभी किया जाए

नहीं बईद ये अहकाम-ए-ताज़ा जारी हों

कि गुम्बदों से परिंदों को अजनबी किया जाए

बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो

और उस विसाल के लम्हे को दाइमी किया जाए

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