इदराक
इक काँटा दिल को डसता था
मौत से पहले ही
उस ने होश में आ कर
बच्चों से क्यूँ नज़रें फेरीं
बरसों ब'अद
सपीद लबादा ओढ़े आई
बोली मैं ने जीते-जी पल पल
रिश्तों के कर्ब को झेला है!
मौत आज़ादी की राहत है!
मौत से पहले ही
मरने का इदराक हुआ
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