शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं
वो सब तस्वीर-ए-इबरत हो गए हैं
दिखाते हैं वो रस्ता क़ाफ़िलों को
जो महरूम-ए-बसारत हो गए हैं
फ़सील-ए-शहर के अंदर न जाना
वो सारे गुर्ग-सूरत हो गए हैं
फ़रोज़ाँ हैं बुलावे साहिलों के
असीर-ए-मौज-ए-ज़ुल्मत हो गए हैं
जबीनों पर रक़म आयात-ए-शफ़क़त
क़तील-ए-तेग़-ए-नफ़रत हो गए हैं