लैल-ए-शब-ताब चटानों में नहीं
लैल-ए-शब-ताब चटानों में नहीं
कोई मफ़्हूम फ़सानों में नहीं
फिर न शब-ख़ून का वक़्त आएगा
रौशनी उन के ठिकानों में नहीं
है तमाशाइयों का जम्म-ए-ग़फ़ीर
अक्स भी आईना-ख़ानों में नहीं
अपने ही साए की फुन्कार न हो
कोई शह-मार ख़ज़ानों में नहीं
कू-ब-कू देते हैं आवाज़ किसे
साया भी ख़ाली मकानों में नहीं
आ गई साअत-ए-ख़ुश-गुफ़तारी
अब कोई तीर कमानों में नहीं
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