आए मशरिक़ से शहसवार बहुत
आए मशरिक़ से शहसवार बहुत
किस को था उन का इंतिज़ार बहुत
क़ाफ़िलों की कोई ख़बर सी नहीं
दूर उठता रहा ग़ुबार बहुत
सुब्ह होने तक उस ने जान न दी
उम्र भर था ख़ुद-इख़्तियार बहुत
फिर कोई सानेहा हुआ होगा
मेहरबाँ क्यूँ हैं ग़म-गुसार बहुत
क्यूँ है हर ज़र्रा कर्बला-मंज़र
है हमें उन पे ए'तिबार बहुत
हो गई सब के आगे रुस्वाई
किस हुनर पर था इफ़्तिख़ार बहुत
(924) Peoples Rate This