उल्टा चक्कर
अजीब चक्कर कोई चला है
जो शय जहाँ से उठाना चाही
उठा न पाए
जहाँ जो रक्खा वहाँ वो रक्खा नहीं रहा है
जो लिखना चाहा वो लिख न पाए
तमाम चक्कर उलट चला है
जो ख़्वाब के दाएरे से बाहर था उस ने आँखों से बैर रक्खा
दिल-ओ-नज़र में जिसे जगह दी वो ख़्वाब बन कर बिखर गया है
नसीब में जो नहीं था उस की तलाश में ज़िंदगी लगा दी
जो हाथ में था वो बे-ख़ुदी में दिया है
जो बात कहनी थी उस की हिम्मत जुटा न पाए
जो लब पे आया वो हर्फ़ ही ग़ैर हो गया है
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