प्यास दायरा बनाती है
हिज्र की ओक से
दर्द पीते हुए
प्यास बढ़ जाती है
हौले जड़ों तक जाती है
हर तरफ़ अपने खे़मे लगा लेती है
रूह में जिस्म में
ज़ेहन में सोच में
नींद में ख़्वाब में
ख़ून में आँख में
रूह के साहिलों
जिस्म के सब जज़ीरों पे बिखरी हुई
ज़ेहन की खेतियों
सोच के गुलिस्तानों में उगती हुई
नींद के दोष पर
ख़्वाब के पँख फैलाए उड़ती हुई
ख़ून के सुर्ख़ियों में हुमकती हुई
आँख के आसमाँ पर चमकती हुई
प्यास ढल जाती है
हिज्र की ओक में
(1089) Peoples Rate This