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मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है - हमीदा शाहीन कविता - Darsaal

मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है

मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है

न इस में आ ये चक्कर मुख़्तलिफ़ है

मुझे आतिश-बजाँ रक्खा गया है

मिरी मिट्टी का जौहर मुख़्तलिफ़ है

मुझे लिखने से पहले सोच लेना

मिरा किरदार यकसर मुख़्तलिफ़ है

मैं ख़्वाबों से ज़ियादा टूटती हूँ

कि मौजूद-ओ-मयस्सर मुख़्तलिफ़ है

ज़रा सी मौज पर हैरान मत हो

यहाँ सारा समुंदर मुख़्तलिफ़ है

कोई मानूस ख़ुशबू साथ उतरी

लहू बोला ये नश्तर मुख़्तलिफ़ है

सितारा है कोई गुल है कि दिल है

तिरी ठोकर में पत्थर मुख़्तलिफ़ है

तिरे गीतों का मतलब और है कुछ

हमारा धुन सरासर मुख़्तलिफ़ है

सफ़र का रंग ओ रुख़ अब तक वही है

मुनादी थी कि रहबर मुख़्तलिफ़ है

किसी जानिब से तो आए बशारत

फ़ज़ा बदली है मंज़र मुख़्तलिफ़ है

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