बशारत के कासों में
अभी तक उसे ढूँडने के लिए
कोई निकला नहीं
वो जिसे भीड़ में खो दिया था कहीं
गुंग अल्फ़ाज़ की लालटेनों को रौशन किए
अपने अपने दरीचों में लटका दिया
और बिजली कड़कते धुआँ-धार मौसम में भी
इस तरह मुंतज़िर हैं कि कुछ देर तक
सरमदी संख बजते ही चारों तरफ़
अपने होने का इज़हार करता हुआ
आप ही वो कहीं से पलट आएगा
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