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कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं - हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं

कहाँ तहरीरें मैं ने बाँट दी हैं

हुनर तदबीरें मैं ने बाँट दी हैं

तुम्हारे ख़्वाब ने ताख़ीर कर दी

सभी ता'बीरें मैं ने बाँट दी हैं

लिखो घर के सभी अफ़राद में अब

मिरी तक़दीरें मैं ने बाँट दी हैं

कई ग़ज़लें तुम्हारे नाम लिक्खीं

बड़ी जागीरें मैं ने बाँट दी हैं

सुनो इन ग़ूँगे-बहरे बाम-ओ-दर को

कई तक़रीरें मैं ने बाँट दी हैं

मिरी आँखें जिन्हें महफ़ूज़ करतीं

वो सब तस्वीरें मैं ने बाँट दी हैं

मिरे क़ैदी मिरे अल्फ़ाज़ 'हामिद'

सुख़न ज़ंजीरें मैं ने बाँट दी हैं

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