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इश्क़ से इज्तिनाब कर लेना - हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

इश्क़ से इज्तिनाब कर लेना

इश्क़ से इज्तिनाब कर लेना

अपनी मिट्टी ख़राब कर लेना

हम ने दुनिया को ख़ूब झेला है

हम से कुछ इकतिसाब कर लेना

बेबसी से नजात मिल जाए

फिर सवाल-ओ-जवाब कर लेना

छोड़ इज़्ज़त-मआब लोगों को

ख़ुद को आली-जनाब कर लेना

कल तुझे कुछ गुनाह करने हैं

आज कार-ए-सवाब कर लेना

इस को भर लेना अपनी आँखों में

इक हक़ीक़त को ख़्वाब कर लेना

क्या कमी है हसीन चेहरों की

फिर नया इंतिख़ाब कर लेना

तुम सर-ए-आम एक दिन 'हामिद'

रूह को बे-नक़ाब कर लेना

हमा-तन-गोश है ये वीरानी

यार 'हामिद' ख़िताब कर लेना

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