जब्र बे-चारगी के मारों में

जब्र बे-चारगी के मारों में

हम हैं ख़ुद अपने सोगवारों में

आइने अक्स को तरसते हैं

सूरतों के तिलिस्म-ज़ारों में

लग़्ज़िश-ए-पा-ए-बे-ज़बानी तक

रौशनी कम है रहगुज़ारों में

लोग अपनी तलाश की ख़ातिर

छुप गए जुस्तुजू के ग़ारों में

किस को तूल-ए-कलाम की फ़ुर्सत

बात करते हैं इस्तिआरों में

मौत का इंतिज़ार करते हैं

मुजरिमों की तरह क़तारों में

(563) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jabr Be-chaargi Ke Maron Mein In Hindi By Famous Poet Hamid Husain Hamid. Jabr Be-chaargi Ke Maron Mein is written by Hamid Husain Hamid. Complete Poem Jabr Be-chaargi Ke Maron Mein in Hindi by Hamid Husain Hamid. Download free Jabr Be-chaargi Ke Maron Mein Poem for Youth in PDF. Jabr Be-chaargi Ke Maron Mein is a Poem on Inspiration for young students. Share Jabr Be-chaargi Ke Maron Mein with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.