प्यारा देस
देस अपना हम को प्यारा क्यूँ न हो
देस अपना हम को प्यारा क्यूँ न हो
दिल फ़िदा इस पर हमारा क्यूँ न हो
''हिन्द'' से बढ़ कर नहीं कोई ज़मीन
गो जहाँ जन्नत ही सारा क्यूँ न हो
कहते हैं जिस चीज़ को आब-ए-हयात
फिर वो शय गंगा की धारा क्यूँ न हो
जिस ने फैलाया जहाँ में नूर-ए-इल्म
आँख का दुनिया की तारा क्यूँ न हो
कब मिटा सकता है हम को आसमाँ
गो वो दुश्मन ही हमारा क्यूँ न हो
हिन्दू ओ मुस्लिम को लड़ते देख कर
रंज से दिल पारा पारा क्यूँ न हो
हम ने ये माना कभी लड़ भी लिए
अज़-सर-ए-नौ भाई-चारा क्यूँ न हो
क्यूँ न हो उल्फ़त अदावत क्यूँ रहे
दुश्मनी क्यूँ हो मुदारा क्यूँ न हो
हम हैं हिन्दोस्तान के सच्चे सपूत
देस की ख़िदमत गवारा क्यूँ न हो
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