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ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं - हमीद नागपुरी कविता - Darsaal

ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं

ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं

तिरे जमाल की तस्वीर बन गया हूँ मैं

हदीस-ए-इश्क़ हूँ अफ़साना-ए-वफ़ा हूँ मैं

भुला सके न जिसे तुम वो माजरा हूँ मैं

मिरी सरिश्त है हंस हंस के ज़ख़्म-ए-ग़म खाना

कि हादसात में पल कर जवाँ हुआ हूँ मैं

उन्हें यक़ीं नहीं मेरे ख़ुलूस-ए-उल्फ़त का

वफ़ा का अपनी ये इनआ'म पा रहा हूँ मैं

हमीद जिस ने मिटाया है बार बार मुझे

उसी फ़रेब-ए-मोहब्बत में मुब्तला हूँ मैं

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