ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं
ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं
तिरे जमाल की तस्वीर बन गया हूँ मैं
हदीस-ए-इश्क़ हूँ अफ़साना-ए-वफ़ा हूँ मैं
भुला सके न जिसे तुम वो माजरा हूँ मैं
मिरी सरिश्त है हंस हंस के ज़ख़्म-ए-ग़म खाना
कि हादसात में पल कर जवाँ हुआ हूँ मैं
उन्हें यक़ीं नहीं मेरे ख़ुलूस-ए-उल्फ़त का
वफ़ा का अपनी ये इनआ'म पा रहा हूँ मैं
हमीद जिस ने मिटाया है बार बार मुझे
उसी फ़रेब-ए-मोहब्बत में मुब्तला हूँ मैं
(838) Peoples Rate This