उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ
अपनी वफ़ाओं को भी फ़रामोश कर दिया
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आने लगे हैं वो भी अयादत के वास्ते
कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था
हुई मुद्दत कि उन को ख़्वाब में भी अब नहीं देखा
ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया
कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था
फिर गई इक और ही दुनिया नज़र के सामने
भूली नहीं उजड़े हुए गुलशन की बहारें
किस शान से गए हैं शहीदान-ए-कू-ए-यार