न सताइश की तमन्ना

निदा आई

अम्बोह-ए-शैदाइयाँ

नाज़नीनाँन-ए-शहर-ए-तख़य्युल

ग़ज़ालान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र

ग़म-गुसारान-ए-दार-ओ-सलीब-ओ-रसन

दैर से अक़ीदत की नायाब सौग़ात ले कर

दर-ए-गुम्बद-ए-फ़न पे सज्दा-कुनाँ हैं

पए-दीदन-ए-मंज़र-ए-शाद-कामाँ

बड़ी तमकनत से उठा

उठ के मैं ने

जो देखा तो हद-ए-नज़र तक फ़रोकश

लहू की लकीरों का इक कारवाँ था

कभी जो रग-ओ-पै में मेरी रवाँ था

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