बर्फ़ की वादी
बर्फ़-आलूदा हैं आँखें
सम्त की पहचान मुश्किल हो गई
किस तरफ़ हैं राहतों के आबशार
किन इलाक़ों में शजर आबाद हैं
कौन सा रस्ता है लर्ज़ां
आँधियों के शोर से
हैं कहाँ हुस्न-ए-सदाक़त की सुहानी वादियाँ
सिलसिला-दर-सिलसिला किज़्ब-ओ-रिया की घाटियाँ
किस तरफ़ है आने वाली साअतों का कोहसार
कितने लम्बे हैं यहाँ मार-ए-नशेब
किस क़दर ऊँची है दीवार-ए-फ़राज़
मैं किनार-ए-उम्र से फिसलूँ तो शायद ही बचूँ
आ रही है
लम्हा लम्हा
बू-ए-बर्फ़
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