सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे
सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे
कल तुम्हारी क़ैद-ए-ख़ुशबू से रहा हो जाएँगे
ज़ेहन में एहसास-ए-रुख़्सत ही न होगा शाम तक
बढ़ते बढ़ते दिन के लम्हे यूँ हवा हो जाएँगे
छोड़ जाओ दामन-ए-इमरोज़ में भी कुछ न कुछ
वर्ना तुम से ताइर-ए-फ़र्दा ख़फ़ा हो जाएँगे
जब न हो कार-ए-नफ़स तो फिर हमारे साथ साथ
ये ज़मीन-ओ-आसमाँ दोनों फ़ना हो जाएँगे
सामने है साअ'त-ए-आख़िर का अन-देखा अज़ाब
उम्र-भर कहते रहे अब बे-नवा हो जाएँगे
(802) Peoples Rate This