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मिलता है हर चराग़ को साया ज़मीन पर - हमदम कशमीरी कविता - Darsaal

मिलता है हर चराग़ को साया ज़मीन पर

मिलता है हर चराग़ को साया ज़मीन पर

रहता नहीं है कोई अकेला ज़मीन पर

हर एक नक़्श उस का हवा ले के उड़ गई

खींचा था हम ने शौक़ का नक़्शा ज़मीन पर

बदले हुए से लगते हैं अब मौसमों के रंग

पड़ता है आसमान का साया ज़मीन पर

गोशा ज़रा सा कोई अमाँ का कहीं मिले

जी तंग हो गया है कुशादा ज़मीन पर

हर एक मौज रुक सी गई साँस की तरह

बहता नहीं है अब कहीं दरिया ज़मीन पर

वो जिन को मेरे घर का निशाँ भी नहीं मिला

हैराँ हैं मुझ को देख के ज़िंदा ज़मीन पर

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