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काम आसाँ है मगर देखिए दुश्वार भी है - हमदम कशमीरी कविता - Darsaal

काम आसाँ है मगर देखिए दुश्वार भी है

काम आसाँ है मगर देखिए दुश्वार भी है

आगे दरवाज़े के रक्खी हुई दीवार भी है

देने वाले से मुझे कोई शिकायत क्यूँ है

राह में धूप भी है साया-ए-अश्जार भी है

क़त्ल कर के जो मुझे साए में फेंक आया है

लोग कहते हैं वही मेरा तरफ़-दार भी है

तुझ को बस अपनी ही तस्वीर नज़र आती है

आइने में कहीं हैरत कहीं ज़ंगार भी है

क्यूँ भला वक़्त का नुक़सान करोगे प्यारे

जो यहाँ अब है तमाशा वही उस पार भी है

मेरे आबा से मुझे क्या न मिला है 'हमदम'

ताक़ में देखिए मुसहफ़ भी है तलवार भी है

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