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फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब - हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा कविता - Darsaal

फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब

फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब

मुझ को बद-नाम करेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब

क़ाफ़िला ऐश का तय्यार है रिंदों के लिए

क़ुल्क़ुल-ए-शीशा-ए-मय है जरस-ए-जाम-ए-शराब

जुम्बिश-ए-बाद-ए-सहर से है तमव्वुज मय में

क़ुव्वत-ए-जान-ए-हज़ीं है नफ़स-ए-जाम-ए-शराब

ख़म लुंढा दूँ तो न चकराए कभी सर मेरा

एक जुरआ में गया बुल-हवस-ए-जाम-ए-शराब

मुझ से पूछो असर-ए-बादा-ए-गुल-गूँ वाइज़

मैं हूँ रिंदों में बहुत नुक्ता-रस-ए-जाम-ए-शराब

टिकटिकी बाँध के देखा किया इतना कि बना

साया-ए-मर्दुम-ए-दीदा मगस-ए-जाम-ए-शराब

मय न हो बू ही सही कुछ तो हो रिंदों के लिए

इसी हीले से बुझेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब

ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं के लिए बू जो चली आती है

है नसीम-ए-सहरी हम-नफ़स-ए-जाम-ए-शराब

हम ने रिंदों का मक़ूला ये सुना है 'शैदा'

सोहबत-ए-ऐश में ज़ाहिद है ख़स-ए-जाम-ए-शराब

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