ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए
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इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
आसान किस क़दर है समझ लो मिरा पता
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ
कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा