तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
हमारे शहर का मंज़र भी गाँव जैसा है
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ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद