मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मेरी मदहोशी मिरे जाम से आगे न बढ़ी
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ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया
पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है