आसान किस क़दर है समझ लो मिरा पता
बस्ती के बाद पहला जो वीराना आएगा
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ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी