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ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद - हकीम नासिर कविता - Darsaal

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद

हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद

कौन घूँघट को उठाएगा सितमगर कह के

और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद

फिर मोहब्बत की ज़माने में न पुर्सिश होगी

रोएगी सिसकियाँ ले ले के वफ़ा मेरे बाद

हाथ उठते हुए उन के न कोई देखेगा

किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद

किस क़दर ग़म है उन्हें मुझ से बिछड़ जाने का

हो गए वो भी ज़माने से जुदा मेरे बाद

वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ

उस का क्या जानिए क्या हाल हुआ मेरे बाद

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