Sad Poetry of Hakeem Manzoor
नाम | हकीम मंज़ूर |
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अंग्रेज़ी नाम | Hakeem Manzoor |
रेज़ा रेज़ा रात भर जो ख़ौफ़ से होता रहा
हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत
मुंतशिर सायों का है या अक्स-ए-बे-पैकर का है
मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है
कुछ समझ आया न आया मैं ने सोचा है उसे
कोई पयाम अब न पयम्बर ही आएगा
ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी
ख़ुद अपने-आप से मिलने का मैं अपना इरादा हूँ
कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए
हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
है इज़्तिराब हर इक रंग को बिखरने का
ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी
छोड़ कर मुझ को कहीं फिर उस ने कुछ सोचा न हो
छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
अज़िय्यतों को किसी तरह कम न कर पाया
अपनी नज़र से टूट कर अपनी नज़र में गुम हुआ
अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है
आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा