Hope Poetry of Hakeem Manzoor
नाम | हकीम मंज़ूर |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Hakeem Manzoor |
बाग़ में होना ही शायद सेब की पहचान थी
वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने
सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है
सफ़र ही कोई रहेगा न फ़ासला कोई
मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है
कुछ समझ आया न आया मैं ने सोचा है उसे
कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए
छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
भेजता हूँ हर रोज़ मैं जिस को ख़्वाब कोई अन-देखा सा
अज़िय्यतों को किसी तरह कम न कर पाया