Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_f3e365ac67d00639aa691fa6cec64bbf, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए - हकीम मंज़ूर कविता - Darsaal

सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए

सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए

नम ज़मीं पर ख़ुश्क मौसम की नवाज़िश चाहिए

शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी

ज़िंदा रहना हो तो क़ातिल की सिफ़ारिश चाहिए

मेरी मुश्किल भागते लम्हों को पकड़ूँ किस तरह

ज़िद उसे अन-देखे ख़्वाबों की नुमाइश चाहिए

भेजता मैं किस को सुब्हों की कुँवारी रौशनी

उस को बूढ़ी रात के रंगों की ताबिश चाहिए

सूखते अल्फ़ाज़ के मौसम में हर्फ़-ए-तर हूँ मैं

फिर सज़ा पहले समाअत की नवाज़िश चाहिए

जो हमारा था वो निकला आफ़्ताबों का हलीफ़

किस ख़ुदा से अब कहा जाए कि बारिश चाहिए

बारयाबी शर्त-ए-ख़ामोशी पे है वो इस तरह

पहले ही तफ़्सील-ए-अहवाल-ए-गुज़ारिश चाहिए

बुज़-दिली मेरी थी जो 'मंज़ूर' मैं ज़ख़्मी हुआ

वो सिपर-बरदार थे उन की सताइश चाहिए

(987) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sare Mamulat Mein Ek Taza Gardish Chahiye In Hindi By Famous Poet Hakeem Manzoor. Sare Mamulat Mein Ek Taza Gardish Chahiye is written by Hakeem Manzoor. Complete Poem Sare Mamulat Mein Ek Taza Gardish Chahiye in Hindi by Hakeem Manzoor. Download free Sare Mamulat Mein Ek Taza Gardish Chahiye Poem for Youth in PDF. Sare Mamulat Mein Ek Taza Gardish Chahiye is a Poem on Inspiration for young students. Share Sare Mamulat Mein Ek Taza Gardish Chahiye with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.