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मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का - हकीम मंज़ूर कविता - Darsaal

मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का

मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का

मैं जानता ही नहीं हूँ मैं हम-सफ़र किस का

न मुझ पे तंज़ करो दोस्तो कि बे-घर हूँ

तुम्हीं कहो कि है तुम में से अपना घर किस का

इस इक सवाल का सूरज भी दे सका न जवाब

मैं सिर्फ़ साया नहीं रूप हूँ मगर किस का

जो मेरे पास था सब लूट ले गया कोई

किवाड़ बंद रखूँ अब मुझे है डर किस का

हर एक शख़्स रहा महव-ए-शग़्ल-ए-संग-ज़नी

किसे पड़ी थी कि देखे उड़ा है सर किस का

ये और बात सज़ा उस को मिल गई वर्ना

चला है ज़ोर दिल-ए-ना-सुबूर पर किस का

तुम्हारी बात अलग है वगर्ना ऐ 'मंज़ूर'

बचा है अब भी सवाद-ए-दिल-ओ-नज़र किस का

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