हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
इश्क़ है ईमान लाने के लिए
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आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है
हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
गुलों से नहीं शाख़ के दिल से पूछो
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है