हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे
और मैं ने तार तार किया हाए क्या किया
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ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
गुलों से नहीं शाख़ के दिल से पूछो