गुलों से नहीं शाख़ के दिल से पूछो
कि ये बद-नुमा ख़ार कितना हसीं है
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(800) Peoples Rate This
आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे