ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
मिलो आदमी की तरह आदमी से
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा