हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
इक तिरी निगाह में इक मिरी निगाह में
खेल नहीं हँसी नहीं हाल मेरा सुन न सुन
दर्द है दो जहान का इश्क़ की एक आह में
ख़ूगर-ए-ज़ुल्म-ओ-जौर को शिकवा-ए-इलतिफ़ात है
क़ल्ब से उठ के छा गई ग़म की घटा निगाह में
ता-ब-हद्द-ए-दीद है एक सिरात-ए-मुस्तक़ीम
हाजत-ए-राहबर नहीं इश्क़ की शाहराह में
दस्त-ए-करम बढ़ा दिया उस ने बिला लिहाज़-ए-जुर्म
क़ाबिल-ए-रहम कुछ न था वर्ना मिरे गुनाह में
कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
कुछ तिरी रहमतों का है हाथ मिरे गुनाह में
लाला-ओ-गुल की महफ़िलें अपनी जगह पे कुछ न थी
जाम-ए-बहार बन गए खिंच के मिरी निगाह में
(2016) Peoples Rate This