'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया

'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया

ख़ुद को भी बे-क़रार किया हाए क्या किया

मुझ को न था ख़ुद अपनी निगाहों पे ए'तिबार

और उस ने ए'तिबार किया हाए क्या किया

जितना ही मैं ख़राब हुआ ना-तवाँ हुआ

उतना ही उस ने प्यार किया हाए क्या किया

मैं उस से बद-गुमाँ रहा उफ़ ऐ फ़रेब-ए-इश्क़

और उस ने मुझ को प्यार किया हाए क्या किया

हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे

और मैं ने तार तार किया हाए क्या किया

मिलता था इक नज़र से मिरी रूह को क़रार

उस ने भी बे-क़रार किया हाए क्या किया

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