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अस्र-ए-जदीद आया बड़ी धूम-धाम से - हैदर अली जाफ़री कविता - Darsaal

अस्र-ए-जदीद आया बड़ी धूम-धाम से

अस्र-ए-जदीद आया बड़ी धूम-धाम से

लेकिन शिकस्त खा गया पिछले निज़ाम से

करता है कोई तर्क-ए-तअल्लुक़ भी इस तरह

महरूम हो गया हूँ पयाम-ओ-सलाम से

ज़रदार के सलाम में सब्क़त सभी की है

महरूम मुफ़्लिसी है जवाब-ए-सलाम से

किस की सदा फ़ज़ाओं में गूँजी है चार-सू

किस ने मुझे पुकारा है बचपन के नाम से

बेचैनियों में रात गुज़रती है इस तरह

आसेब कोई घेर ले जैसे कि शाम से

अब बा-शुऊर लोग भी ये सोचने लगे

रखना है हम को काम फ़क़त अपने काम से

सफ़्फ़ाकियाँ बढ़ीं तो दरिंदा-सिफ़त बना

इंसान गिरा है आदमिय्यत के मक़ाम से

बारिश नहीं हुई तो मुझे फ़ाएदा हुआ

महफ़ूज़ है मकान मिरा इंहिदाम से

हल्की हँसी ने फ़िक्र को ज़ौ-बार कर दिया

फूटी किरन कि तरह लब-ए-तश्ना-काम से

ये तो है फ़ज़्ल-ए-रब कि तरन्नुम हुआ नसीब

लेकिन बयाज़ ख़ाली है ख़ुद के कलाम से

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