Islamic Poetry of Haidar Ali Aatish
नाम | हैदर अली आतिश |
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अंग्रेज़ी नाम | Haidar Ali Aatish |
जन्म की तारीख | 1778 |
मौत की तिथि | 1847 |
जन्म स्थान | Lucknow |
सुन तो सही जहाँ में है तेरा अफ़्साना क्या
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
न जब तक कोई हम-प्याला हो मैं मय नहीं पीता
कूचा-ए-यार में हो रौशनी अपने दम की
कोई बुत-ख़ाने को जाता है कोई काबे को
ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की
फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
दिल की कुदूरतें अगर इंसाँ से दूर हों
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
भरा है शीशा-ए-दिल को नई मोहब्बत से
बरहमन खोले हीगा बुत-कदा का दरवाज़ा
ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है
ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए
ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है
या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए
वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआ
वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए
तेरी जो याद ऐ दिल-ख़्वाह भूला
ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के
सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
सर काट के कर दीजिए क़ातिल के हवाले
सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का
रुख़ ओ ज़ुल्फ़ पर जान खोया किया
रुजूअ बंदा की है इस तरह ख़ुदा की तरफ़
मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं
मगर उस को फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना आता है