मसनद-ए-शाही की हसरत हम फ़क़ीरों को नहीं
फ़र्श है घर में हमारे चादर-ए-महताब का
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कोई तो दोश से बार-ए-सफ़र उतारेगा
हाजत नहीं बनाओ की ऐ नाज़नीं तुझे
मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था
रख के मुँह सो गए हम आतिशीं रुख़्सारों पर
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
कोई बुत-ख़ाने को जाता है कोई काबे को
दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर
ऐ फ़लक कुछ तो असर हुस्न-ए-अमल में होता
हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ
आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का