हसरत-ए-जल्वा-ए-दीदार लिए फिरती है
हसरत-ए-जल्वा-ए-दीदार लिए फिरती है
पेश-ए-रोज़न पस-ए-दीवार लिए फिरती है
इस मशक़्क़त से उसे ख़ाक न होगा हासिल
जान अबस जिस्म की बे-कार लिए फिरती है
देखने देती नहीं उस को मुझे बे-होशी
साथ क्या अपने ये दीवार लिए फिरती है
किसी फ़ासिक़ के तू मुँह को न करेगी काला
क्यूँ सियाही ये शब-ए-तार लिए फिरती है
तू निकलता नहीं शमशीर-ब-कफ़ ऐ क़ातिल
मौत मेरे लिए तलवार लिए फिरती है
माल-ए-मुफ़्लिस मुझे समझा है जुनूँ ने शायद
वहशत-ए-दिल सर-ए-बाज़ार लिए फिरती है
काबा ओ दैर में वो ख़ाना-बरअंदाज़ कहाँ
गर्दिश-ए-काफ़िर-ओ-दीं-दार लिए फिरती है
रंज लिक्खा है नसीबों में मिरे राहत से
ख़्वाब में भी हवस-ए-यार लिए फिरती है
चाल में इस की सरापा है किसी की तक़लीद
कब्क को यार की रफ़्तार लिए फिरती है
दर-ए-यार आए ठिकाने लगे मिट्टी मेरी
दोश पर अपने सबा बार लिए फिरती है
हँसते हैं देख के मजनूँ को गुल-ए-सहराई
पा-बरहना तलब-ए-ख़ार लिए फिरती है
साया सा हुस्न के हम-राह है इश्क़-ए-बेबाक
साथ ये जिंस-ए-ख़रीदार लिए फिरती है
किसी सूरत से नहीं जाँ को फ़रार ऐ 'आतिश'
तपिश-ए-दिल मुझे लाचार लिए फिरती है
(1484) Peoples Rate This