Ghazals of Haidar Ali Aatish
नाम | हैदर अली आतिश |
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अंग्रेज़ी नाम | Haidar Ali Aatish |
जन्म की तारीख | 1778 |
मौत की तिथि | 1847 |
जन्म स्थान | Lucknow |
ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए
ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए
वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआ
वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है
उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए
तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया
तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा
तिरी ज़ुल्फ़ों ने बल खाया तो होता
तेरी जो याद ऐ दिल-ख़्वाह भूला
ताज़ा हो दिमाग़ अपना तमन्ना है तो ये है
तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त
ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के
सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
शब-ए-फ़ुर्क़त में यार-ए-जानी की
सर शम्अ साँ कटाइए पर दम न मारिए
सर काट के कर दीजिए क़ातिल के हवाले
सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का
रुख़ ओ ज़ुल्फ़ पर जान खोया किया
रुजूअ बंदा की है इस तरह ख़ुदा की तरफ़
रोज़-ए-मौलूद से साथ अपने हुआ ग़म पैदा
रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए
क़ुदरत-ए-हक़ है सबाहत से तमाशा है वो रुख़