वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया
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बे-सहारों का इंतिज़ाम करो
सितम की तेग़ ये कहती है सर न ऊँचा कर
रसा हों या न हों नाले ये नालों का मुक़द्दर है
दार-ओ-रसन ने किस को चुना देखते चलें
बड़े अदब से ग़ुरूर-ए-सितम-गराँ बोला
बद-तर है मौत से भी ग़ुलामी की ज़िंदगी
ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे
आबाद रहेंगे वीराने शादाब रहेंगी ज़ंजीरें
इस दीवाने दिल को देखो क्या शेवा अपनाए है
मय-ख़ाने की सम्त न देखो
अब खुल के कहो बात तो कुछ बात बनेगी
इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ