हर सहारा बे-अमल के वास्ते बे-कार है
आँख ही खोले न जब कोई उजाला क्या करे
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
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बे-सहारों का इंतिज़ाम करो
तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा
चाहे तन मन सब जल जाए
अभी से होश उड़े मस्लहत-पसंदों के
ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
बड़े अदब से ग़ुरूर-ए-सितम-गराँ बोला
मय-ख़ाने की सम्त न देखो
आबाद रहेंगे वीराने शादाब रहेंगी ज़ंजीरें
हाए वो नग़्मा जिस का मुग़न्नी
ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे
इस दीवाने दिल को देखो क्या शेवा अपनाए है