हाए वो नग़्मा जिस का मुग़न्नी
गाता जाए रोता जाए
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बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो
ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
बड़े अदब से ग़ुरूर-ए-सितम-गराँ बोला
रसा हों या न हों नाले ये नालों का मुक़द्दर है
अब खुल के कहो बात तो कुछ बात बनेगी
लहू से अपने ज़मीं लाला-ज़ार देखते थे
बे-सहारों का इंतिज़ाम करो
आबाद रहेंगे वीराने शादाब रहेंगी ज़ंजीरें
तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा
बज़्म-ए-तकल्लुफ़ात सजाने में रह गया
सिर्फ़ ज़बाँ की नक़्क़ाली से बात न बन पाएगी 'हफ़ीज़'