अभी से होश उड़े मस्लहत-पसंदों के
अभी मैं बज़्म में आया अभी बोला कहाँ बोला
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वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
कभी कभी हमें दुनिया हसीन लगती थी
हाए वो नग़्मा जिस का मुग़न्नी
ये भी तो सोचिए कभी तन्हाई में ज़रा
बद-तर है मौत से भी ग़ुलामी की ज़िंदगी
पी कर चैन अगर आया भी कितनी देर को आएगा
सितम की तेग़ ये कहती है सर न ऊँचा कर
इस दीवाने दिल को देखो क्या शेवा अपनाए है
ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
बे-सहारों का इंतिज़ाम करो
गुदाज़-ए-दिल से मिला सोज़िश-ए-जिगर से मिला
सिर्फ़ ज़बाँ की नक़्क़ाली से बात न बन पाएगी 'हफ़ीज़'