ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे

ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे

ग़म की बुलंदियों से उतरने न दे मुझे

घर ही उजड़ गया हो तो लुत्फ़-ए-क़याम क्या

ऐ गर्दिश-ए-मुदाम ठहरने न दे मुझे

मक़्सद ये है सुकूँ किसी सूरत न हो नसीब

ऐ चारासाज़ बात भी करने न दे मुझे

चेहरे पे खाल तक भी न छोड़ेंगे बद-निगाह

ऐ मेरे ख़ैर-ख़्वाह सँवरने न दे मुझे

है देखने की चीज़ जो बिस्मिल का रक़्स भी

दुनिया ये चाहती है कि मरने न दे मुझे

ये दौर संग-दिल ही नहीं तंग-दिल भी है

गर बस चले तो आह भी करने न दे मुझे

अब भी ये हौसला है कि कुछ काम आ सुकूँ

मैं टूट तो गया हूँ बिखरने न दे मुझे

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