तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त
उस की मिसाल क्या जो अदीम-उल-मिसाल हो
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बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए
उस को आज़ादी न मिलने का हमें मक़्दूर है
गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता
हम को दिखा दिखा के ग़ैरों के इत्र मलना
यूँ उठा दे हमारे जी से ग़रज़
जान ही जाए तो जाए दर्द-ए-दिल
आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो
मिरे बुत-ख़ाने से हो कर चला जा काबे को ज़ाहिद
पहुँचे उस को सलाम मेरा
पत्थर से न मारो मुझे दीवाना समझ कर
बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है
पी लो दो घूँट कि साक़ी की रहे बात 'हफ़ीज़'