शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से
तो हँस के बोले अलग बैठिए क़रीने से
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काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या दैर-ओ-हरम से मतलब
लिख दे आमिल कोई ऐसा ता'वीज़
यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले
नाज़नीं जिन के कुछ नियाज़ नहीं
ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है
आप ही से न जब रहा मतलब
जाओ भी जिगर क्या है जो बेदाद करोगे
उस को आज़ादी न मिलने का हमें मक़्दूर है
अफ़्सुर्दगी-ए-दिल से ये रंग है सुख़न में
कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
जब तक कि तबीअ'त से तबीअत नहीं मिलती
परी थी कोई छलावा थी या जवानी थी